ओ3म् मा नो रक्ष आ वेशीदाघृणीवसो मा यातुर्यातुमावताम्।
परो गव्यूत्यनिरामप क्षधमग्ने सेध रक्षस्विन:॥ ऋग्वेद 8.60.20॥
शब्दार्थ- (आघृणी-वसो अग्ने) हे दीप्तिधन नेता ! (न:) हममे (रक्ष:) राक्षस, नाशकारी, उपद्रवी (मा आवेशीत्) प्रवेश न करने पाए (यातुमावताम्) पीड़ादायक दुष्ट रोगों और दुष्ट पुरुषों की (यातु:) पीड़ा (न:) हममें प्रविष्ट न हो। (अनिराम्) दुर्बलता, दरिद्रता को (क्षुधम्) भुखमरी को (रक्षस्विन:) दुष्ट राक्षसों को (पर: गव्यूति) हमसे कोसों दूर (अप सेध) मार भगा।
भावार्थ- हमारे नेता कैसे होने चाहिएँ? प्रस्तुत मन्त्र में आदर्श नेता के कुछ गुणों का वर्णन किया है।
1. नेता ऐसे सजग और जागरूक होने चाहिएँ कि राक्षस और उपद्रवी लोग राष्ट्र में, नागरिकों में प्रवेश न कर सकें।
2. दुष्ट रोग और दुष्ट पुरुष भी नागरिकों में प्रविष्ट न हो सकें।
3. नेता ऐसे होने चाहिएँ जो अकर्मण्यता और दरिद्रता को मार भगाएँ।
4. नेता को अपने राष्ट्र का प्रबन्ध इस रीति से करना चाहिए कि कहीं भुखमरी न हो, लोग अभावग्रस्त न हों। जीवन के लिए उपयोगी और आवश्यक सभी वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों।
5. नेता ऐसे होने चाहिएँ जो देश पर आक्रमण करने वाले शत्रुओं को कोसों दूर मार भगाएँ। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती (दिव्ययुग- फरवरी 2015)
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